तीन तलाक को राजनीतिक चश्मे से नहीं, वेदनाओं के आधार पर समझें
- 29
- December
- 2018

तीन तलाक बिल लोकसभा में तो पारित हो गया, लेकिन सबको अच्छी तरह से पता है कि राज्यसभा में तमाम विपक्षी दलों के सहयोग के बिना इसे पास नहीं कराया जा सकता… इस विषय पर मैं अपना पक्ष रखना चाहती हूँ… तीन तलाक विषय को किसी राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं की वेदना को देखकर तय होना चाहिए… ये विधेयक किसी समुदाय, धर्म, आस्था के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह महिलाओं के लिए इंसाफ तय करेगा… लोकसभा में हमारी सरकार ने यह जानकारी दी है कि जनवरी 2018 से 10 दिसंबर के बीच, हमारे सामने तीन तलाक के करीब 477 मामले आए… यहां तक कि बीते बुधवार को भी इस तरह का एक मामला हैदराबाद से हमारे सामने आया… इन्हीं वजहों से सरकार अध्यादेश लाई थी… मैं सदन से सर्वसम्मति से विधेयक पारित करने का आग्रह करती हूं… फिर कहती हूं कि इसे राजनीतिक परिप्रेक्ष्य से न देखा जाए… इस सदन ने दुष्कर्मियों के लिए फांसी का प्रावधान दिया है… इसी सदन ने दहेज और महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए घरेलू हिंसा के खिलाफ विधेयक पारित किया है… इसलिए, हम क्यों नहीं इस विधेयक का एकस्वर में समर्थन कर सकते…
मुस्लिम महिलाओं को एक साथ तीन तलाक बोल छोड़ने की कुप्रथा पर रोक लगाने संबंधी बिल को लोकसभा ने भले ही फिर पारित कर दिया है, मगर विपक्षी दलों के सहयोग के बिना इसे राज्यसभा में पारित कराना मुश्किल है… विपक्षी दल इस बिल को राज्यसभा की प्रवर समिति को भेजने की रणनीति तैयार कर रहे हैं… लेकिन फिर से मैं ऊपर लिखे गए अपने वक्तव्य को दोहराना चाहूंगी … तीन तलाक को किसी राजनीतिक चश्मे से नहीं बल्कि मुस्लिम महिलाओं की वेदना को देखते हुए फैसला करें… आखिर मुस्लिम महिलाएं भी हमारे ही देश की हैं… वह हमारी ही माताएं एवं बहनें हैं… क्या हम अपनी माताओं और बहनों के लिए अपने राजनीतिक चश्मे को इस विषय के लिए नहीं उतार सकते ?
Recent Posts
- सुचेतना (NGO) की सदस्य सचिव अनुश्री मुखर्जी द्वारा टरपोलिन का वितरण
- ये वो भारत है जिसके जवाब पर विश्व सवाल नहीं उठा रहा है ।
- Inauguration of Digital Literacy Courses by Former President of India and Bharat Ratna Shri Pranab Mukherjee
- With Jagatguru Sankara Swami Shri Shri Vijendra Saraswati Maharaj at Kanchipuram
- प्रयाग में सदाचार और कोलकाता में भ्रष्टाचार का संगम