
मुझे अच्छी तरह ध्यान में है इसी वर्ष जून 2018 में मैं कुछ सामाजिक कार्य हेतु पश्चिम बंगाल के पुरुलिया के डाभा गांव में थी… अचानक एक दिन मुझे खबर मिली कि बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान होकर टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा भाजपा के दो कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गयी है… पहली हत्या बलरामपुर इलाके के सुपढ़ीह गांव में हुई… 19 वर्षीय दलित युवक त्रिलोचन महतो का शव एक पेड़ से लटकता मिला था, जबकि दूसरी हत्या डाभा गांव में हुई, जहां बीजेपी कार्यकर्ता की लाश हाईटेंशन खंबे से लटकती मिली थी…
इस घटना के बाद दहशत का माहौल व्याप्त हो गया… टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा पूरे क्षेत्र में भय का माहौल बना दिया गया… गांव भर के लोग जागकर और पहरा देकर रात बिताने लगे… एक सप्ताह से पुरुलिया को राजनीतिक हिंसा का अखाड़ा बनते मैंने प्रत्यक्ष रूप से देखा…
गौरतलब है कि बीजेपी पश्चिम बंगाल में जब-जब मजबूती के साथ उभरने के लिए तैयार हुई है, तब-तब कभी वामपंथी दलों द्वारा अब तृणमूल कांग्रेस द्वारा उसे दबाने की कोशिश की जाती है और इसमें पुलिस के साथ साथ उन तमाम अधिकारियों को शामिल किया जाता है, जो उनके इशारे पर काम करते हैं…
इलाके में तृणमूल पर राजनीतिक रंजिश के तहत पहली बार ऐसी घटनाओं को अंजाम देने का आरोप लगा हो, ऐसा नहीं है… पूरे पश्चिम बंगाल में अगर आप अपने आप को तृणमूल के अलावा दूसरे दलों के कार्यकर्ता होने की बात को कहते हैं, तो आपको किसी भी वक्त जोखिम उठाना पड़ सकता है… सवाल है कि क्या हमने ऐसे पश्चिम बंगाल की कल्पना की थी? क्या देश के सबसे बड़े लोकतंत्र में यह शोभा देता है कि हम पूरे सूबे में भय के माहौल में जीवन बिताएं?
आइए, पश्चिम बंगाल में एक भयमुक्त माहौल बनाएं…
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