श्रीमती अनुश्री मुखर्जी – प्रोफाइल
श्रीमती अनुश्री मुखर्जी, महिला सशक्तीकरण की दिशा में कार्य को लेकर वह नाम हैं, जो पिछले 20 वर्षों से लगातार गैर-सरकारी संगठनों से जुड़कर महिलाओं के अधिकार व प्रशिक्षण को लेकर प्रयासरत हैं। श्रीमती मुखर्जी मानती हैं कि देश में महिलाओं को पुरुषों से बराबर कहा तो जाता है, लेकिन आज भी हमारा समाज उस पुरानी मानसिकता में ही जी रहा है, बस शब्द और कहने के मायने बदल गए हैं। महिलाओं को समानता का अधिकार तभी मिल सकता है जब उन्हें बराबर शिक्षा देकर तथा कुशल कामगार बनाकर प्रोत्साहित किया जाए और उन्हें सक्षम बनाया जाय।
जीवन परिचय:
श्रीमती अनुश्री मुखर्जी देश के कई शहरों व कस्बों में महिलाओं के उत्थान को लेकर कार्य करती रही हैं। गांवों में महिलाओं को व्यवसायिक प्रशिक्षण देना, उनके अधिकार को लेकर आवाज उठाना, उनकी छोटी-मोटी समस्यायों का समाधान उपलब्ध कराना… जैसे मुद्दों पर श्रीमती मुखर्जी निरंतर कार्य कर रही हैं और इन महिलाओं के समस्याओं को लिकर आवाज़ भी उठाती रही हैं। आज अपनी बौद्धिकता और कर्मठता के बल बूते देश के कई शहरों में इन्होंने अपने संस्था के सदस्यों के साथ कई गांवों को गोद लिया, वहां की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के साथ-साथ उनका विकास किया और सृजनात्मक कार्य किए हैं ।
बचपन से ही इनका शिक्षा के प्रति गहरा लगाव रहा। इंटरमीडिएट के फाइनल इयर में ही इनकी शादी हो गई। लेकिन पति से मिले पूरे सहयोग की वजह से इन्होंने पटना से ही अपना स्नातक और फिर एमबीए की पढ़ाई पूरी की। चूंकि उस समय इनके पति भारतीय वायु सेना में थे और श्रीमती मुखर्जी के कुछ अलग करने की जिज्ञासा ने उन्हें नई दिशा की तरफ कार्य करने को प्रोत्साहित किया।
श्रीमती मुखर्जी ने कुछ सदस्यों के साथ मिलकर एयरफोर्स वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की शुरुआत की और बतौर सचिव कई वर्षों तक (कई एयरफोर्स यूनिट्स के लिए) कार्य करती रहीं। राजस्थान, तमिनाडु तथा बिहार में निवास के दौरान उन्होंने एयरफोर्स स्टेशन के करीब के गांवों को गोद लेकर ‘स्वयं सहायता समूह’ का गठन किया, इस समूह के मदद से वहाँ के महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में प्रमुख भूमिका निभाई। आज इसी का उदाहरण है कि राजस्थान, जोधपुर से पाबूपुरवा गांव, चेन्नई से मुथापुधुपेट, बिहार में चूनापुर गांव में सैकड़ों महिलाओं की अपनी टीम है जो प्रशिक्षण पाकर खुद का रोजगार चला रही हैं और दूसरों को भी प्रत्साहित व प्रशिक्षित कर रही हैं।
उन्होंने महिला सशक्तीकरण की दिशा में उत्कृष्ट कार्य किया है और महिलाओं की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए 2005 में ‘सुचेतना’ (SUCHETNA- SOCEITY FOR UMBILICAL CORD FOR HARMONY ENTHRALLING TOTAL AWARENESS) की शुरुआत की, जिसने पश्चिम बंगाल, बिहार, राजस्थान, तमिलनाडु में जगजागरुकता के साथ-साथ हज़ारों महिलाओं के विकास में अहम योगदान दिया है।
श्रीमती मुखर्जी कई गैर-सरकारी संगठनों से जुड़ी रही हैं, जिनमें एडीआर (एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) प्रमुख हैं। (यह एनजीओ चुनावी प्रक्रिया और उम्मीदवारों की संपत्तियों को जनता के बीच लाने का कार्य करती है)
शिक्षाः
श्रीमती मुखर्जी की शुरुआती शिक्षा पटना के सेंट जासेफ कॉन्वेंट में हुई। उन्होंने पटना वूमेंस कॉलेज से इंटरमीडिएट पूरी की तथा पटना विश्वविद्यालय से अंग्रेजी (प्रतिष्ठा) में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद इग्नू से एमबीए की पढ़ाई पूरी की। सबसे बड़ी उपलब्धि रही कि इन्होंने आईएएस की परीक्षा पास की, लेकिन परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से सेवा में नहीं जा सकीं।
परिवारः
श्रीमती मुखर्जी के पति श्री रंजन मुखर्जी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में कार्यरत हैं। इनके पिता का नाम टी.एन. रॉय चौधरी है तथा माता का नाम अमिता रॉय चौधरी है। इनके पिता बिहार में पीडब्ल्यूडी विभाग में इंजीनियर रहे हैं तथा मां पेशे से पटना हाईकोर्ट की वकील रही हैं। माता और पिता दोनों ही शुरू से शिक्षा और प्रोत्साहन देने वाले रहे, जिसका परिणाम रहा कि शैक्षिक क्षेत्र में भी श्रीमती मुखर्जी का खासा लगाव रहा।
राजनीतिक सहयोगः
वह भारतीय जनता पार्टी की एक्टिव मेंबर होने के साथ वर्ष 2004 से इंटेलिक्चुअल सेल से जुड़ी रही हैं। 2005 के बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान भी पार्टी के साथ उन्होंने जीतोड़ मेहनत की। श्रीमती मुखर्जी ने बिहार में भाजपा को मजबूत करने के लिए पूरे राज्य का भ्रमण कर पार्टी के कई प्रत्याशियों की सूचना को पार्टी के सामने रखा, जिससे सही उम्मीदवार का चयन हो सके। इस सर्वे ने पार्टी को नई मजबूती प्रदान की थी। उन्होंने 2004, 2009 तथा 2014 के चुनावों में पार्टी के लिए जोश-ए-जज्जे के साथ चुनाव-प्रचार किया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, स्मृति न्यास जैसे महान शख्स के त्याग और बलिदान पर आधारित उनके लेख अक्सर कमल संदेश व अन्य पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। 2008-09 के दौरान उनका स्व. बाल आप्टे जी के साथ भी कार्य करने का अनुभव रहा।
उन्होंने पार्टी के डिफेंस सेल में भी सहयोग देकर पूर्व सुरक्षा अधिकारियों के लिए कई योजनाएं लाने में अहम भूमिका निभाई। इसके बाद वह पूर्वांचल सेल में बतौर सदस्य जुड़ी रही हैं।
भाजपा के वरिष्ठ नेता वी. षणमुगन्तन (जो मौजूदा मेघालय के राज्यपाल है) के संसदीय कार्यकाल के दौरान उन्हें संसद में प्रश्नोत्तर के लिए डाटा उपलब्ध करवाना, उनके लिए संसद में पूछे जाने वाले प्रश्नों को तैयार करने में सहायता करना तथा प्रतिपक्ष द्वारा पूछे गए प्रश्नों का आंकड़ों के आधार पर जवाब भी तैयार करने में सहयोग कर चुकी हैं।
अन्य अनुभव:
उन्होंने राजस्थान में जोधपुर स्थित महाराजा हनुमंत सिंह मेमोरियल पब्लिक स्कूल के प्राचार्य की भूमिका में तीन वर्षों तक कार्य किया है।
वर्तमान में वह दो कंपनियों (फर्स्ट एसेट्स और 360 डिग्री इंजीनियरिंग एंड कंसल्टिंग सर्विसेस लिमिटेड) में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में शामिल हैं।
निजी व्यक्तित्व:
श्रीमती मुखर्जी कांची के जगतगुरु शंकराचार्य के साथ-साथ तमिलनाडु (पीथम) के संकरा कामा कोटि के साथ जुड़ी रही हैं। वह विनम्रता और ईमानदारी की धनी मानी जाती हैं। उनका लक्ष्य नकारात्मक राजनीति के सांचे को तोड़ उच्चतम कोटि के साथ देश की सेवा करना है। वह एक सकारात्मक राजनैतिक परिकल्पना पर काम करने वालों में से हैं। उनका राजनीतिक सिद्धांत है- ‘सभी एक सामान हैं’।
दृढ़ विचारधाराः
चूंकि श्रीमती मुखर्जी का देश के अलग-अलग शहरों में घूमकार कार्य करने का खासा अनुभव रहा है, उनकी मानें तो देश में आज भी राज्य सरकार चाहें कितना भी दावा करे, लेकिन ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति निंदनीय व दयनीय है। कहीं बीमारी, तो कहीं स्वच्छता, तो कहीं शोषण के ऐसे सोचनीय पहलू हैं, जिन पर आज तक राज्य सरकारों का कोई ध्यान नहीं है। महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें लायक बनाया जाए तो निस्संदेह ऐसे-ऐसे हुनर सामने आएंगे जो विश्वव्यापी होंगे।
सम्मानः
श्रीमती मुखर्जी को चेन्नई के एयरफोर्स अवादी में ए.एफ.डब्ल्यू.डब्ल्यू.ए (एयरफोर्स वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन) के लिए वर्ष 2000 में बेस्ट सेक्रेटरी का अवॉर्ड मिल चुका है। इतना ही नहीं, महिलाओं को लेकर उनके बेहतर कार्य को देखते हुए राष्ट्रीय महिला आयोग समेत कई सामाजिक समूहों ने उन्हें कई बार सम्मानित किया है।
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